मकर संक्रांति के बारे में 13 बड़ी बातें, पर्व मनाने से पहले गीता में लिखे मकर संक्रांति के तीन रहस्यों को भी जानिए। सूर्य संक्रांति में मकर संक्रांति का महत्व अधिक माना गया है। मकर संक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति के रोचक तथ्य।
मकर संक्रांति का अर्थ: 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है, जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरी में प्रवेश करने की इस प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं।
चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है।
वर्ष में होती हैं 12 संक्रांतियां
पृथ्वी 23.5 डिग्री झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है। वर्ष में 4 स्थितियां होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें विषुवत रेखा (21 मार्च और 23 सितंबर), कर्क रेखा (21 जून), और मकर रेखा (22 दिसंबर) पर पड़ती हैं।
भारतीय ज्योतिष में सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। 12 संक्रांतियों में से मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण होती हैं।
उत्तरायण का प्रारंभ
इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण का अर्थ है जब सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर झुकता है। यह समय 6 महीने तक रहता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में शरीर त्यागने से व्यक्ति पुनर्जन्म से मुक्त होता है। भीष्म पितामह ने इसी दिन देह त्यागा था।
फसलों की खुशी का पर्व
मकर संक्रांति वसंत ऋतु की शुरुआत का पर्व है। इस समय रबी की फसलें लहलहाने लगती हैं।
संपूर्ण भारत का पर्व
भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है। जैसे-
दक्षिण भारत: पोंगल
उत्तर भारत: लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव
पूर्वोत्तर भारत: बिहू
तिल-गुड़ का महत्व
इस दिन तिल और गुड़ से बने व्यंजन बनाए जाते हैं। यह सर्दी में शरीर को गर्म रखने और पोषण देने में मदद करते हैं।
स्नान, दान, और पूजा
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान का महत्व है। गंगासागर में मेला लगता है। मलमास समाप्त होने पर शुभ कार्य शुरू होते हैं।
पतंग महोत्सव
पतंग उड़ाने का उद्देश्य है सर्दी में कुछ समय सूर्य की किरणों में बिताना, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
ऐतिहासिक महत्व
महाभारत में भीष्म पितामह ने देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का चयन किया।
इसी दिन गंगा नदी भगीरथ के साथ सागर में मिली थीं।
भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी।
सौर और चंद्र वर्ष
सौर वर्ष में दिन की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है।
सौर वर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन।
चंद्र वर्ष के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।
देवताओं का दिन
मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है।
कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है।
देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्य का एक वर्ष होता है।
अन्य रोचक तथ्य
इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव के घर एक महीने के लिए जाते हैं।
मकर संक्रांति को बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का प्रतीक माना जाता है।
यह पर्व भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और ज्योतिषीय विज्ञान का अद्भुत उदाहरण है।