वसंत पंचमी की पौराणिक कथा

वसंत पंचमी की पौराणिक कथा

वसंत पंचमी कथा

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वसंत पंचमी का पर्व विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है। इस दिन विशेष रूप से देवी सरस्वती, भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है। यह पर्व भारत, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य देशों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने और पीले फूलों से देवी सरस्वती की आराधना करने की परंपरा है।

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वसंत पंचमी की पौराणिक कथा

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वे अपनी सर्जना से पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संसार में कुछ कमी रह गई है, जिससे चारों ओर मौन छाया हुआ है।

इस समस्या के समाधान हेतु ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर भगवान विष्णु का आह्वान किया और स्तुति की। भगवान विष्णु तत्काल प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी को आदिशक्ति माँ दुर्गा का आह्वान करने की सलाह दी।

भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा जी ने आदिशक्ति माँ दुर्गा का आह्वान किया। उसी क्षण माँ दुर्गा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर देवी के रूप में थी, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में वर मुद्रा, तीसरे में पुस्तक और चौथे में माला थी। जैसे ही उन्होंने वीणा का मधुरनाद किया, समस्त सृष्टि में ध्वनि का संचार हुआ। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया, पवन चलने से सरसराहट होने लगी, पशु-पक्षियों ने ध्वनि करना प्रारंभ किया और समस्त जीवों को वाणी प्राप्त हो गई।

तब समस्त देवताओं ने देवी की वंदना की और उन्हें "सरस्वती" नाम प्रदान किया। देवी सरस्वती को वाग्देवी, वाणी, शारदा और वीणावादिनी के नाम से भी जाना जाता है।

इसके बाद आदिशक्ति माँ दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि ये देवी सरस्वती आपकी शक्ति के रूप में सृष्टि का संचालन करेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं और पार्वती भगवान शिव की शक्ति हैं। इसके उपरांत माँ दुर्गा अंतर्धान हो गईं।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी माता सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया कि वसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाएगी। तभी से इस दिन माँ सरस्वती की आराधना की जाती है।


वसंत पंचमी पर विशेष अनुष्ठान और परंपराएँ

  1. सरस्वती पूजा: इस दिन देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। विद्यार्थियों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है।

  2. विद्यारंभ संस्कार: छोटे बच्चों को इस दिन पहली बार पढ़ाई शुरू करवाई जाती है। इसे 'अक्षर आरंभ' या 'विद्यारंभ' संस्कार कहा जाता है।

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  4. पीले वस्त्र धारण करना: पीला रंग समृद्धि, बुद्धि और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, इसलिए लोग इस दिन पीले वस्त्र पहनते हैं।

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    पुष्प अर्पण: माँ सरस्वती को विशेष रूप से पीले फूल अर्पित किए जाते हैं।

  6. भोग प्रसाद: इस दिन खीर, मालपुआ और पीले रंग की मिठाइयों का भोग लगाया जाता है।

  7. पतंगबाजी: भारत के कई हिस्सों, विशेषकर पंजाब और उत्तर भारत में इस दिन पतंगबाजी का विशेष आयोजन किया जाता है।


वसंत पंचमी पर क्या करें और क्या न करें?

क्या करें?

✔ माँ सरस्वती की पूजा करें और विद्यार्थियों को विद्या सामग्री भेंट करें।

✔ गुरुजनों और माता-पिता का आशीर्वाद लें।

✔ पढ़ाई, संगीत और कला से जुड़ी नई शुरुआत करें।

✔ दान-पुण्य करें, गरीब बच्चों को पुस्तकें और लेखन सामग्री दें।

क्या न करें?

✘ झूठ न बोलें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।

✘ गुरु, माता-पिता और बुजुर्गों का अपमान न करें।

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✘ किसी का अहित न करें और क्रोध से बचें।


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वसंत पंचमी का यह पावन पर्व ज्ञान, कला और संगीत के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस दिन माता सरस्वती की आराधना करने से विद्या, बुद्धि और कला में विशेष वृद्धि होती है। यह पर्व हम सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए।

वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

माँ सरस्वती की कृपा से,

ज्ञान, बुद्धि और कला का प्रकाश आपके जीवन में फैले,

सफलता की सरसों आपके आँगन में खिले,

संगीत की मधुर स्वर लहरियाँ आपके जीवन को मधुमय करें।